तुम आओगे !
वैसा कोई गहरा यकीन नही था मुझे किसी दिन,
मगर, तुम आए आख़िरकार।
खो जाना ही होगा सबको एक दिन!
जिस तरह खुश्बू खो जाती है हवा के किसी अंजान मुल्क में
जितनी भी कोशिश करें,
चाहत रुक नही सकती किसी को
चिर दिन चिर काल।
हम सभी, क्रमश: लुप्त हो जाने के इंतज़ार में खड़े, एक-एक बिंदु !
जागतिक मध्याकर्षण की सीमा पार कर पल भर में
बह जाना ही होगा_
कब, किस दिशा में, कोई क्या जाने !
जाने या अनजाने में क्या थी वह हीरा-मुक्ता जैसा प्रत्याशा!
अम्लान अंतहीन प्यारी सी ममता।
कैसी ललक बढ़ा दी थी !
मेरे छूते ही मुखरित किया था आकाश-हवा।
आख़िरी सीमा पर खो जाने से पहले,
इसीलिए शायद ढूँढ पाई स्वर्गीय सुवास का एक बुन्द।
इंतज़ार, एक अनुच्चारित प्रार्थना!
पीलेपन के बीच बहता हुआ करौंदे रंग का एक झरना।