तुम्हारे जाने बगैर, तुम्हारे सोचे बगैर,
सदियों से तुम्हारे पीछे-पीछे मैं आ रहा हूँ !
तुम पहले जैसी हसीन नही रही,
थकान और उम्र ने मुझे भी तोड़कर रख दिया है।
आगे-पीछे आवाजाही करने के हमारे इस खेल को ख़त्म करने
के लिए इस जगह मैं कई बार आया हूँ।
जहाँ से तुम मुझसे या फिर मैं तुमसे आगे निकाल गय़ा हूँ !
बगल वाली उस जगह पर अब पक्की सड़क बन गई है।
गढ्ढे में गिरने वालों को बचाने के लिए
किनारे में तारबंदी की गई है।
दोपहर की धूप-हवा झेलती हुई आई थी क्या तुम भी मुझे ढूँढती हुई ?
उस पार के पहाड़ ने कहा था क्या तुमसे
उस दिन हादसे के बारे मे विस्तार से!
लाल मिट्टी की पगडंडी जबसे पक्की हो गई
तुम्हारी परछाई भी तबसे नजर नही आती!