1 On the denuded boughThe butterflyGropes for Memories of Spring ! 2 I saw a pair of quivering lipsIn the indistinct lightFrom that moment onwardsI stoppedYearning for the Moon…. 3 When the river is in spateFishes splash about.No bees could be seen hovering aroundWhat is then that lulling drone in airIn this dry season ?…
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तुम आए आख़िरकार (अनुबादकः दिनकर कुमार)
तुम आओगे !वैसा कोई गहरा यकीन नही था मुझे किसी दिन,मगर, तुम आए आख़िरकार। खो जाना ही होगा सबको एक दिन!जिस तरह खुश्बू खो जाती है हवा के किसी अंजान मुल्क मेंजितनी भी कोशिश करें,चाहत रुक नही सकती किसी कोचिर दिन चिर काल। हम सभी, क्रमश: लुप्त हो जाने के इंतज़ार में खड़े, एक-एक बिंदु…
लटकी हुई मेरी लाल-हरी कमीज (अनुबादकः किशोर कुमार जैन)
वह घर था सागर के किनारे, सागर मुझे पसंद है। सीने में सपने पालना जिसने मुझे सिखाया था; और लहरों के शोर से आतुर कर दिया था मेरा दिल। कई मंजिलो वाले राजमहल जैसा, उस घर की बालकनी में, आज भी स्पष्ट दिखाई देती है रक्तरंजित मेरी परछांई; और देखोगे, आते हुवे या जाते हुवे…
হ্যাঙারে আবদ্ধ লাল-সবুজ আমার পোশাকটি
(চিত্রশিল্পী ফ্রিডা কাল্হ’র বিখ্যাত ছবি “My dress hangs there” দ্বারা অনুপ্রাণিত হয়ে লেখা আমার কবিতা) বাড়ীটি ছিল সাগরের পারেসাগর আমার বড়ই প্রিয়বুকের মধ্যে স্বপ্ন পুষে রাখতে সেই আমাকে শিখিয়েছিল;আর ঢেউয়ের গর্জনেআকুল করে তুলেছিল আমার হৃদয়। প্রাসাদোত্তম সেই বাড়ীটার ব্যেলকনিতেআজও স্পষ্ট দেখা যায়রক্তবর্ণ আমার প্রতিচ্ছবি;আসতে থাকা অথবা যেতে থাকা জাহাজদের সাথেসাগরের মনোরম দৃশ্যরাজি। নিজের অস্তিত্বের জানানি…